Education- A Needs Of Life

  • शिक्षा और उसकी आवश्यकता-
शिक्षा का अर्थ है सीखना और सिखाना। ... व्यापक अर्थ में शिक्षा किसी समाज में सदैव चलने वाली सोद्देश्य सामाजिक प्रक्रिया है जिसके द्वारा मनुष्य की जन्मजात शक्तियों का विकास, उसके ज्ञान एवं कौशल में वृद्धि एवं व्यवहार में परिवर्तन किया जाता है और इस प्रकार उसे सभ्य, सुसंस्कृत एवं योग्य नागरिक बनाया जाता है।

  • शिक्षा का उद्देश्य-
प्राचीन भारत में शिक्षा का मुख्य उद्देश्य 'मुक्ति' की चाह रही है (सा विद्या या विमुक्तये / विद्या उसे कहते हैं जो जन्म मरण के दीर्घ रोग को समाप्त कर दे अर्थात मोक्ष प्राप्ति। 

 यह सर्वमान्य सिद्धान्त है कि इस संसार में मानव ऐसा प्राणी है जिसकी सर्वविध उन्नति कृत्रिम हैए स्वाभाविक नहीं। शैशवकाल में बोलने,चलने आदि की क्रियाओं से लेकर बड़े होने तक सभी प्रकार का ज्ञान प्राप्त करने हेतु उसे पराश्रित ही रहना होता है, दूसरे ही उसके मार्गदर्शक होते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि समय.समय पर विविध माध्यमों अथवा व्यवहारों से मानव में अन्यों के द्वारा गुणों का आधान किया जाता है। 

यदि ऐसा न किया जाये तो मानव ने आज के युग में कितनी ही भौतिक उन्नति क्यों न कर ली हो वह निपट मूर्ख और एक पशु से अधिक कुछ नहीं हो सकता .यह नितान्त सत्य है। अतः सृष्टि के आदि में वेदों के आविर्भाव से लेकर आज तक मानव को जैसा वातावरण,समाज व शिक्षा मिलती रही वह वैसा ही बनता चला गया क्योंकि ये ही वे माध्यम हैं जिनसे एक बच्चा कृत्रिम उन्नति करता है और बाद में अपने ज्ञान तथा तपोबल के आधार पर विशेष विचारमन्थन और अनुसन्धान द्वारा उत्तरोत्तर ऊँचाइयों को छूता चला जाता है। इस जगतीतल में आज जितना बुद्धिवैभव और भौतिक उन्नति दृष्टिपथ में आती है,वह पूर्वजों की शिक्षाओं का प्रतिफल है। उसके लिए हम उन के ऋणी हैं। वे ही हमारे परोक्ष शिक्षक हैं। यह परम्परा अनादिकाल से चली आ रही है। अतः सामान्यतः कहा जा सकता है कि मानव की उन्नति की साधिका शिक्षा है। जिसका वैदिक स्वरूप इसप्रकार है. जिस से विद्याएं सभ्यताएं धर्मात्मताएं जितेन्द्रियतादि की बढ़ती होवे और अविद्यादि दोष छूटें उसी को शिक्षा कहते हैं।

आधुनिक शिक्षा के उद्देश्य-
उक्त सामाजिक स्थिति के विवेचन से यह स्पष्ट है कि आधुनिक शिक्षापद्धति में वह शक्ति वा उद्देश्यों की पूर्ति की योग्यता प्रतीत नहीं होती जिससे मानव में मनुष्यता के बीज अर्थात् श्रेष्ठता के विचार आरोपित किये जा सकें। साथ ही शारीरिकए मानसिक और आत्मिक बल भी बढ़ाया जा सके। वर्तमानयुगीन शिक्षा के उद्देश्य तो केवल ऐसी शिक्षा को देना है जिससे अधिक से अधिक अर्थ का आगम हो और उसी के लिए बौद्धिक विकास की परिकल्पना है।

  • आधुनिक शिक्षा से आये दोषों का निवारण-
आज इस शिक्षा ने मनुष्य को मनुष्य से अपरिचित करवा दिया है, घर-परिवार टूट रहे हैं, मानवता का नामो-निशान तक नहीं रहा है। 
ऐसे समय में हमें आवश्यकता है एक समाज सुधारक और मानव मूल्यों को समझाने वाले एक महापुरुष की जो अपनी शिक्षा दीक्षा से मनुष्य में संतोष की भावना जागृत कर सके और मनुष्यजीवन के मूल उददेश्य से परिचित करवा सके। 
आज लगभग 25 वर्षों से मानव उत्थान व समाज सुधार हेतु कबीर पंथी संत रामपालजी महाराज सतलोक आश्रम बरवाला, जिला हिसार (हरियाणा) प्रयासरत हैं जिनके प्रयासों से एक बार फिर खोई हुई मानवता लौटेगी और उनकी शिक्षा दीक्षा भक्ति करेगा हर इंसान, भक्ति से सुखी होगा हर इंसान पृथ्वी बनेगी स्वर्ग समान। 
 अधिक जानकारी के लिए अवश्य देखें साधना टीवी चैनल सांय 7:30 बजे से और पढ़ें संत रामपालजी महाराज लिखित शास्त्र आधारित पवित्र पुस्तकें। 


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